Sunday, July 24, 2016

बरवक्त यहां 'गाय' कानून तोड़ने का सुरक्षित तरीका

सुभाष गताड़े

Courtesy Cartoonist Satish Acharya 
गोभक्त बालू सरवैया- जिन्होंने एक गाय भी पाली थी- ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि मरी हुई गाय की खाल निकालने के अपने पेशे के चलते किसी अलसुबह उन पर गोहत्या का आरोप लगाया जाएगा और उन्हें तथा उसके बच्चों को सरेआम पीटा जाएगा. इतना ही नहीं किसी गाड़ी के पीछे बांध कर अपने गांव से थाने तक उनकी परेड निकाली जाएगी.

उना, गुजरात की इस घटना ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया है. पिछले दिनों इस मसले पर बात करते हुए गुजरात सरकार के चीफ सेक्रेटरी जीआर ग्लोरिया ने गोरक्षा के नाम पर चल रही गुंडागर्दी को रेखांकित किया. उन्होंने बताया कि समूचे गुजरात में दो सौ से ज्यादा ऐसे गोरक्षा समूह उभरे हैं जो ‘अपने हिंसक व्यवहार के चलते और जिस तरह वो कानून को अपने हाथ में लेते हैं, उसके चलते कानून और व्यवस्था का मसला बन गए हैं.’

ग्लोरिया ने अपने बयान में यह भी जोड़ा कि ऐसे समूहों के खिलाफ हम सख्त कार्रवाई करनेवाले हैं क्योंकि भले ही यह ‘स्वयंभू गोभक्त हों मगर वास्तव में गुंडे हैं.’ शहर से गांव तक फैले उनके नेटवर्क तथा स्थानीय पुलिस के साथ उनकी संलिप्तता आदि बातों को भी उन्होंने रेखांकित किया.

ध्यान रहे कि यह पहली दफा नहीं है जब गोरक्षा के नाम पर बढ़ रही असामाजिक गतिविधियों की तरफ संवैधानिक संस्थाओं या उनके प्रतिनिधियों की तरफ से ध्यान खींचा गया हो. अभी ज्यादा दिन नहीं हुआ जब पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने भी इसी बात को रेखांकित किया था. 

अदालत का कहना था कि ‘‘गोरक्षा की दुहाई देकर बने कथित प्रहरी समूह जिनका गठन राजनीतिक आंकाओं एवं राज्य के वरिष्ठ प्रतिनिधियों की शह पर हो रहा है, जिनमें पुलिस भी शामिल है, वह कानून को अपने हाथ में लेते दिख रहे हैं.’

मालूम हो कि अदालत उत्तर प्रदेश के मुस्तैन अब्बास की हरियाणा के कुरूक्षेत्र में हुई अस्वाभाविक मौत के मसले पर उसके पिता ताहिर हुसैन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी. समाचार के मुताबिक पांच मार्च को मुस्तैन शाहबाद से भैंस खरीदने निकला, जब उसके पास 41,000 रूपए थे. 

उसे कथित तौर पर गोरक्षा दल के सदस्यों ने पकड़ा और पुलिस को सौंप दिया. याचिकाकर्ता के मुताबिक 12 मार्च को शाहबाद की पुलिस ने उसे छोड़ने का आश्वासन दिया मगर उसे बाद में धमकाया और पीटा.

16 मार्च को याचिकाकर्ता ने उच्च अदालत के सामने हेबियस कार्पस याचिका दाखिल कर बेटे को पेश करने की अपील की. वारंट अफसर पुलिस स्टेशन गया, जहां मुस्तैन नहीं मिला. बाद में चार अप्रैल को उसकी लाश कुरूक्षेत्र में बरामद हुई.

अदालत ने इस मामले की सीबीआई जांच की सिफारिश की है. रेखांकित करनेवाली बात यह है कि हाईकोर्ट की इस टिप्पणी के कुछ समय बाद ही गुड़गांव, हरियाणा की उस घटना का विडियो भी वायरल हुआ जिसमें ट्रांसपोर्ट के काम में लगे अल्पसंख्यक समुदाय के दो लोगों को स्वयंभू गोरक्षा समूह के लोगों ने जबरदस्ती गोबर खिलाया और गोमूत्र पिलाया था और इस तरह उन्हें ‘शुद्ध’ किया था.

गौरतलब है कि मुस्तैन की अस्वाभाविक मौत इस तरह का कोई पहला प्रसंग नहीं है. पिछले साल के अंत में हरियाणा के पलवल में मांस ले जा रहे एक ट्रक पर स्वयंभू गोभक्तों की ऐसी ही संगठित भीड़ ने हमला कर दिया था, अफवाह फैला दी गई कि उसमें गोमांस ले जाया जा रहा है. 

पूरे कस्बे में दंगे जैसी स्थिति बनी. पुलिस मौके पर पहुंची और उसने चालक एवं मालिक पर कार्रवाई की. ऐसी कार्रवाइयों को अब ऊपर से किस तरह शह मिलती है, इसका सबूत दूसरे दिन ही दिखाई दिया जब सरकारी स्तर पर यह ऐलान हुआ कि गोभक्तों के नाम पर पहले से दर्ज मुकदमे वापस होंगे.

नौ दिसम्बर को हरियाणा के ही करनाल जिले के बाणोखेडी गांव के पास पंजाब से यूपी जा रहे लोगों से भरे कैंटर पर अंधाधुंध गोलीबारी की गई, जिसमें एक युवक मारा गया और कई घायल हो गए. पता चला कि पंजाब के नवांशहर में फैक्टरी में काम करनेवाले 55 मजदूर कैंटर पर सवार होकर यूपी के अपने गांव पंचायत चुनाव के लिए वोट डालने जा रहे थे, रास्ते में रात के डेढ़-दो बजे उन पर अचानक अंधाधुंध गोलीबारी की गयी.

सबसे चिंताजनक पहलू यह था कि इस जघन्य हत्याकांड को अंजाम देने वाले गिरोह के साथ पुलिसकर्मी भी थे. बाद में जांच करने पर दो पुलिस कर्मियों सहित पांच लोगों को गिरफतार किया गया. याद रहे कैंटर में बैठे अधिकतर लोग अल्पसंख्यक समुदाय के थे और उन्हें गो-तस्कर बताकर उन पर हमला किया गया था.

इसमें कोई दोराय नहीं कि कानून के राज को ठेंगा दिखा कर की जा रही ऐसी वारदातों ने राष्ट्रव्यापी शक्ल धारण कर ली है.

अक्तूबर 2015 में सहारनपुर के बीस साला व्यक्ति को हिमाचल प्रदेश के नाहन जिले में साराहन गांव के पास लोगों ने पीट कर मार डाला था और उनके साथ मौजूद चार अन्य लोगों को पीटकर अधमरा कर दिया था.

इन पर भी आरोप लगाया गया कि यह गायोें की तस्करी करते हैं. अभी पिछले ही माह 29 अप्रैल को जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को लिखा कि पंजाब में मटन विक्रेताओं और आयातकों को आए दिन प्रताड़ित किया जा रहा है.

राजस्थान पर केन्द्रित द हिन्दू अखबार की एक रिपोर्ट के मुताबिक सूबे में कहीं भी छापा डाल कर गायों को जब्त करनेवाले इन स्वयंभू गोभक्तों को इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि जिन गायों को वे तथाकथित गोतस्करोंं से से बरामद कर रहे हैं, उन्हें कहां भेजा जाएगा, क्या उनके रहने खाने का इन्तजाम भी है या नहीं. 

उदाहरण के तौर पर जयपुर म्युनिसिपल कारपोरेशन के तत्वावधान में संचालित हिंगोनिया गोशाला को देखें. वहां नौ हजार से अधिक गायें रखी गयी हैं. आए दिन लगभग 30 से 40 गायें मर रही हैं, मगर उनका कोई पुरसाहाल नहीं है. न खाने पीने के सही साधन हैं और न बीमार गायों के इलाज का कोई उपाय. नतीजतन 200 से अधिक कर्मचारियों वाली इस गोशाला में गायों की मौतें बेकाबू हो गई हैं.

पिछले दिनों उना घटना के बहाने चली चर्चा में जदयू के सांसद शरद यादव ने सवाल उठाया कि इन गोरक्षकों का निर्माण किसने किया? सरकार ऐसे समूहों पर पाबंदी क्यों नहीं लगा सकती है? यह क्या तमाशा चल रहा है? हम तालिबान की बात करते हैं असल में हमारी जाति व्यवस्था का ढांचा भी तालिबान जैसा है, हमें उके बारे में भी बात करनी चाहिए.’

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